Narendra Modi सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लेकर देश में विकास और परिवर्तन की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ शुरू हुई इस यात्रा ने कुछ समय तक देश के बड़े हिस्से को प्रेरित किया। आर्थिक सुधारों से लेकर सामाजिक योजनाओं तक, सरकार ने कई ऐसे कदम उठाए जो जनता के व्यापक हित में माने गए। लेकिन समय के साथ, सरकार के समक्ष चुनौतियों की एक नई लहर उभरी है, जो न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सरकार को बैकफुट पर धकेल रही है।

घरेलू चुनौतियाँ
1. आर्थिक नीतियों की आलोचना
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान कई आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिनमें सबसे प्रमुख थे नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (GST)। नोटबंदी का उद्देश्य कालाधन और भ्रष्टाचार को खत्म करना था, लेकिन इसके क्रियान्वयन में आई कमियों ने इसे विवादित बना दिया। लाखों लोगों की आजीविका पर इसका सीधा असर पड़ा और छोटी-मझोली कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। GST, जिसे ‘एक राष्ट्र, एक कर’ की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया, भी छोटे व्यापारियों और उद्यमियों के लिए एक चुनौती साबित हुआ। इसके तहत टैक्स की जटिल संरचना और तकनीकी समस्याओं ने व्यापार को कठिन बना दिया।
2. बढ़ती सामाजिक असमानता
PM Narendra Modi ने ‘जनधन योजना’, ‘उज्ज्वला योजना’ और ‘आयुष्मान भारत’ जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। इन योजनाओं से निश्चित रूप से समाज के वंचित तबकों को फायदा हुआ, लेकिन साथ ही समाज में बढ़ती असमानता की समस्या भी उभर कर सामने आई है। देश में बेरोजगारी की दर बढ़ी है और विभिन्न समुदायों के बीच असंतोष का माहौल बना हुआ है। किसान आंदोलन, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों ने सरकार को घेर लिया और विभिन्न समाजिक समूहों के बीच बढ़ते तनाव ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
3. सरकार के निर्णयों पर विपक्ष की प्रतिक्रिया
मोदी सरकार के कई निर्णयों ने विपक्ष को आक्रामक रुख अपनाने का अवसर दिया। संसद में सरकार की नीतियों के खिलाफ लगातार विरोध देखने को मिला है। कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच लंबे समय तक चला गतिरोध विपक्ष के लिए एक प्रमुख मुद्दा बना। इसी तरह, आर्थिक मंदी, महंगाई, और बेरोजगारी के मुद्दे पर भी विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा। विपक्ष की ये आलोचनाएँ जनता के बीच भी व्यापक रूप से गूँज रही हैं, जिससे सरकार की छवि को नुकसान हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय चुनौतियाँ
1. विदेश नीति में कमजोरी
India की विदेश नीति हमेशा से वैश्विक मंच पर उसकी सशक्त उपस्थिति का प्रतीक रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें कमजोरी के संकेत दिखे हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में तनाव ने सरकार की विदेश नीति को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। लद्दाख में चीनी घुसपैठ और उससे जुड़े सैन्य संघर्षों ने सरकार की रणनीतिक स्थिति को चुनौती दी है। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ लगातार बिगड़ते संबंध और कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव ने भारत की स्थिति को कमजोर किया है।
2. वैश्विक मंच पर गिरती छवि
भारत की छवि एक मजबूत और स्थिर लोकतंत्र के रूप में रही है, लेकिन हाल के वर्षों में वैश्विक मंच पर इसकी चमक फीकी पड़ती दिख रही है। लोकतंत्र, मानवाधिकार, और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत पर सवाल उठाए हैं। कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स में भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है, जो देश की छवि के लिए चिंताजनक है। इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी भारत को आलोचना का सामना करना पड़ा है।
3. पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में तनाव
भारत के लिए उसकी सुरक्षा और स्थिरता के दृष्टिकोण से पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इन संबंधों में तनाव देखा गया है। नेपाल, बांग्लादेश, और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों में आई गिरावट ने भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर किया है। चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) और पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती साझेदारी ने भारत के रणनीतिक हितों के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
समग्र दृष्टिकोण
इन चुनौतियों के बीच, मोदी सरकार ने कुछ प्रमुख कदम उठाए हैं जिनका उद्देश्य इन समस्याओं का समाधान करना है। हालाँकि, इन प्रयासों की सफलता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आर्थिक मोर्चे पर, सरकार ने कई योजनाओं और पैकेजों की घोषणा की है, लेकिन उनका लाभ कितना हुआ है, यह स्पष्ट नहीं है। सामाजिक मुद्दों पर, सरकार ने संवाद और सुलह की कोशिश की है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं हो पाई है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सरकार ने अपने कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा देने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री मोदी ने कई देशों का दौरा किया है और भारत की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की है। लेकिन इसके बावजूद, वैश्विक समुदाय के साथ भारत के संबंधों में आई खटास को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सका है।