Saudi Arabia ने दिया America को बहुत बड़ा झटका !!

Saudi Arabia और America का संबंध दशकों पुराना है, जो मुख्यतः ऊर्जा और सुरक्षा के मामलों पर आधारित है। यह संबंध Second World War के बाद से ही मजबूत हुआ है, जब अमेरिका ने सऊदी अरब के तेल संसाधनों की सुरक्षा की गारंटी दी थी। इस संबंध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था पेट्रो डॉलर एग्रीमेंट (Petrodollar Agreement) , जिसने World की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला था।

Petrodollar Agreement

पेट्रो डॉलर एग्रीमेंट 1970 के दशक में हुआ एक समझौता था जिसके तहत सऊदी अरब अपने तेल की बिक्री केवल अमेरिकी डॉलर में करता था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य डॉलर को वैश्विक मुद्रा के रूप में स्थापित करना था, जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती थी। इस एग्रीमेंट के तहत, सऊदी अरब को अपनी तेल की बिक्री से होने वाली आय को अमेरिकी ट्रेजरी बांड्स में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था, जिससे अमेरिकी वित्तीय बाजार को स्थिरता मिलती थी।

हाल ही में, सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने पेट्रो डॉलर एग्रीमेंट (Petrodollar Agreement) को रद्द करने का फैसला किया है। यह निर्णय इस बात का संकेत है कि सऊदी अब अपनी नीतियों में स्वायत्तता (Autonomy) चाहता है और अमेरिकी Dollar पर निर्भरता को कम करना चाहता है। यह निर्णय न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे सऊदी और अमेरिका के बीच के Geo Political संबंधों में भी बड़ा बदलाव आ सकता है। Saudi Arabia अब अन्य मुद्राओं में भी भुगतान स्वीकार करेगा, जिससे Dollar की मांग में कमी आएगी।

इस निर्णय का American Dollar की स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। पेट्रो डॉलर एग्रीमेंट के रद्द होने से डॉलर की वैश्विक मुद्रा के रूप में स्थिति कमजोर हो सकती है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि अब तक डॉलर की वैश्विक स्थिति से अमेरिका को कई लाभ मिलते रहे हैं। Dollar की मांग में कमी आने से अमेरिकी वित्तीय बाजार में अस्थिरता आ सकती है और अमेरिकी ट्रेजरी बांड्स की मांग में भी कमी आ सकती है। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिकी सरकार को अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए अधिक ब्याज दरों पर उधार लेना पड़ सकता है।

Saudi के इस निर्णय पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। कुछ देश इसे एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जो वैश्विक मुद्रा संतुलन को बेहतर बना सकता है। यह कदम अन्य देशों को भी अपने तेल की बिक्री में विविधता (Diversity) लाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे Global Currency System में अधिक स्थिरता आ सकती है। वहीं, कुछ अन्य देशों ने इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिमपूर्ण माना है। वे मानते हैं कि इससे Financial Market में अस्थिरता आ सकती है और वैश्विक व्यापार में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

चीन (China) और रूस (Russia) जैसे देशों ने सऊदी अरब के इस निर्णय का स्वागत किया है। वे लंबे समय से डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। चीन ने अपनी मुद्रा युआन को अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं और Saudi के इस निर्णय से उसे इस दिशा में सफलता मिल सकती है। इसी प्रकार, रूस भी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के प्रयास में है और सऊदी का यह कदम उसे इस दिशा में बल देगा।

सऊदी के इस निर्णय का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव आ सकता है और विभिन्न मुद्राओं में तेल की कीमतों का निर्धारण करने से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है। इसके अलावा, तेल निर्यातक देशों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार में नए बदलाव आ सकते हैं।

        सऊदी अरब का यह निर्णय न केवल अमेरिका के लिए बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में सऊदी और अमेरिका के संबंध कैसे विकसित होते हैं और इस निर्णय का वैश्विक बाजार पर क्या प्रभाव पड़ता है। सऊदी का यह कदम एक नए युग की शुरुआत कर सकता है, जहां विभिन्न मुद्राओं का महत्व बढ़ेगा और डॉलर का एकाधिकार समाप्त हो सकता है।

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