भारत में हुए हालिया चुनावों के बाद Pm Modi और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ तो ले ली, लेकिन इस बार के चुनावी परिणाम बीजेपी और आरएसएस के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में मिली हार ने RSS को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। चुनावी जानकारों का और बहुत सारे मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि इस बार के चुनाव में बीजेपी के द्वारा आरएसएस के द्वारा उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में पूरी तरह निष्क्रियता दिखाई गई। Pm Modi के द्वारा अपने आप को पुजारी के रूप में व्यक्त करना साथ ही साथ ऐसे लोगों को हाल ही के समय पार्टी में शामिल करना जो पहले आरएसएस और हिंदुओं को भला बुरा कहते रहे ,ऐसे लोगों को पार्टी के अंदर ज्यादा महत्व देना जो पहले हिंदू विरोधी या फिर बीजेपी विरोधी रहे हैं उन्हें तवज्जो देना और हिंदूवादी थॉट को बढ़ाकर आगे ले जाने वाले नुपुर शर्मा जैसे कार्यकर्ता और नेताओं को हास्य पर बिठा देना इससे आरएसएस बेहद खफा है।

चुनावी परिणाम और प्रभाव:
उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बीजेपी की हार ने कई सवाल खड़े किए हैं। BJP, जिसने राम मंदिर आंदोलन को अपने चुनावी एजेंडे का हिस्सा बनाया था, अयोध्या में भी हार गई। यह हार केवल बीजेपी के लिए ही नहीं, बल्कि आरएसएस के लिए भी विचारणीय है। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में मिली हार ने बीजेपी के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।
RSS और BJP के बीच मतभेद:
RSS प्रमुख मोहन भागवत का हालिया बयान इस बात का संकेत देता है कि आरएसएस BJP की कार्यशैली से प्रसन्न नहीं है। मोहन भागवत ने नागपुर में दिए अपने बयान में प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों पर सवाल उठाए। आरएसएस की नाराजगी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि पार्टी में उन लोगों को शामिल करना जो पहले आरएसएस और हिंदुओं के विरोधी थे।
प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के फैसले:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, लेकिन कुछ फैसले ऐसे भी रहे हैं जिनसे आरएसएस को नाराजगी हुई है। आरएसएस को यह भी लग रहा है कि बीजेपी ने अपने हिंदूवादी एजेंडे से भटक गई है और इस वजह से उसे चुनावी नुकसान हुआ है।
इतिहास और आरएसएस का उदय:
आरएसएस का इतिहास 1925 से शुरू होता है जब केशव बलराम हेडगेवार ने इसकी स्थापना की थी। इसका उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट करना और देश की एकता को बनाए रखना था। आरएसएस का गठन ऐसे समय में हुआ था जब भारत में हिंदू-मुस्लिम संघर्ष और अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” की नीति चल रही थी। आरएसएस ने हिंदुओं को संगठित करने का कार्य किया और कांग्रेस के विपरीत एक अलग पहचान बनाई। इस समय आरएसएस में 1 करोड़ से ज्यादा प्रशिक्षित सदस्य हैं। किसी को भी तनखा नहीं मिलती है किसी को भी कोई भी अलग से फैसिलिटी नहीं मिलती है सभी लोग एक जैसी यूनिफॉर्म रखते हैं एक जैसा विचार राष्ट्र की एकता भारत की एकता हिंदू राष्ट्र की स्थापना इस विचार को लेकर आगे बढ़ते हैं। दुनिया के लगभग 40 देशों में आरएसएस सक्रिय है 56000 से ज्यादा दैनिक शाखाएं लगती हैं शाखाएं का मतलब है कि रोजाना लोग इकट्ठे होते हैं।50 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं में जाते हैं देश के हर तहसील और लगभग 55000 गांवों में शाखाएं लग रही हैं।
RSS से BJP का उदय
भारत पाकिस्तान के बीच शरणार्थियों की सुरक्षा को लेकर नेहरू और लियाकत अली के बीच में एक समझौता हुआ इससे नाराज होकर केंद्रीय उद्योग मंत्री डॉ0 श्यामा प्रसाद मुखरजी उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और वो इस्तीफा देने के बाद आरएसएस प्रमुख माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी से मिले। गोलवलकर और मुखर्जी ने महसूस किया कि आरएसएस को अब राजनीतिक आवाज की जरूरत है और साथ मिलकर भारतीय जन संघ की स्थापना का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया यही कारण है कि 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली के राघ होमल गर्ल्स हाई स्कूल में जनसंघ का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके अध्यक्ष बने और संस्थापक सदस्यों में संघ प्रचारक बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय जी शामिल हुए इस पार्टी की स्थापना जनसंघ के नाम से की। अगर आप बीजेपी की वेबसाइट पर जाएंगे तो सबसे पहले आपको यही दिखाई देगा । दिल्ली के अंदर इसकी स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी के द्वारा प्रथम अध्यक्षता में की गई थी इसीलिए आपने नोटिस किया हो तो बीजेपी की बहुत सारी योजनाओं में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम होता है। आरएसएस ने अपने बहुत सारे लोग प्रचारक बनाए कि आरएसएस की बातों को सबके साथ साझा करना है कोई व्यक्ति प्रचारक लेवल पर अगर पहुंचा है तो फिर वह शादी नहीं करेगा। शादीशुदा है तो वह परिवार के साथ नहीं रहेगा। मोदी जी भी आरएसएस के ऐसे ही 1978 में एक संभाग स्तरीय प्रचारक हुआ करते थे । जब मोदी जी आरएसएस के साथ जुड़े हुए थे इसी कालखंड में मोदी जी को जनरल सेक्रेटरी बना कर के भेजा गया अब देखिए बीजेपी के अंदर आज भी जो जनरल सेक्रेटरी रैंक का पद है ना स्टेट लेवल पर या केंद्र लेवल पर वो आरएसएस का ही होता है आरएसएस का ही नेता वहां जाकर बैठता है ऐसे ही मोदी जी को गुजरात में जनरल सेक्रेटरी बनाकर भेजा गया फिर जनरल सेक्रेटरी से उन्हें वहां पर सीएम बनाया गया और सीएम बनाकर पीएम पद के लिए भी आरएसएस ने इनका नाम 2012 में प्रस्तावित किया कि चूंकि मोदी जी प्रचारक रहे हैं इसलिए इनका नाम 2012 में राजनाथ सिंह जी के माध्यम से गोवा अधिवेशन में 2013 में बुलवाया गया राजनाथ सिंह जी भी आरएसएस के ही कार्यकर्ता रहे हैं ।यहां पर हिंदू राष्ट्र का मतलब अखंड भारत का मतलब समावेशी विकास है यहां पर यह अर्थ नहीं है कि हिंदू हिंदू रहेंगे मुसलमानों को बाहर निकाल दिया जाए
वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना:
वर्तमान में आरएसएस और बीजेपी के बीच संबंध कुछ तनावपूर्ण दिखाई दे रहे हैं। मोहन भागवत के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि आरएसएस भविष्य में बीजेपी के नेतृत्व में बदलाव की संभावना को देख रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में बीजेपी और आरएसएस अपने मतभेदों को कैसे सुलझाते हैं और देश की राजनीति में क्या बदलाव आते हैं।
आरएसएस का भविष्य में क्या कदम होगा, यह बीजेपी के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। अगर आरएसएस बीजेपी की नीतियों से संतुष्ट नहीं होता है तो वह कोई बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के भविष्य पर सवाल उठे हैं। आरएसएस और बीजेपी के बीच के मतभेद भविष्य की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बीजेपी कैसे इन चुनौतियों का सामना करती है और आरएसएस के साथ अपने संबंधों को सुधारती है।