BJP: भारतीय राजनीति में स्पीकर पद एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पद न केवल संसद की कार्यवाही का संचालन करता है, बल्कि संविधान की धारा 10 के तहत एंटी-डिफेक्शन कानून के अनुपालन की निगरानी भी करता है। हाल ही में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के बीच स्पीकर पद को लेकर विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है।

BJP की रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Modi) के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सहयोगी दलों की मांगों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित रणनीति अपनाई है। TDP ने इस बार पांच कैबिनेट पदों की मांग की थी, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) ने रेल मंत्रालय और वित्त मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण पदों की मांग की। भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखी है, जिससे एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का बहुमत सुनिश्चित हो सके।
BJP ने स्पीकर पद के लिए अपने उम्मीदवार को चुनने में भी सावधानी बरती है। उन्होंने इस पद के लिए एक ऐसे उम्मीदवार को चुना है, जो न केवल पार्टी के भीतर लोकप्रिय है, बल्कि सहयोगी दलों के साथ भी बेहतर तालमेल बैठा सके। यह रणनीति भाजपा को स्पीकर पद पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करती है, जो संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है।
स्पीकर पद की राजनीति
स्पीकर का पद भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत, स्पीकर के पास कई शक्तियाँ होती हैं जैसे कि किसी पार्टी के टूटने या दूसरी पार्टी के साथ मर्जर को वैधता देना। इस प्रकार, स्पीकर की भूमिका विपक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। विपक्ष द्वारा टीडीपी को कहा जा रहा है कि आप अपना स्पीकर पद लो हम आपको समर्थन करगें
टीडीपी का प्रभाव
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान है। 1999 में, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार टीडीपी के समर्थन से ही चल रही थी। उस समय, जीएमसी बालयोगी टीडीपी के सदस्य थे और उन्होंने स्पीकर के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी। इस बार भी, टीडीपी ने भाजपा के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाए रखने के लिए स्पीकर पद की मांग की थी।
टीडीपी की मांगें न केवल पार्टी के हितों को दर्शाती हैं, बल्कि उनके समर्थन का महत्व भी स्पष्ट करती हैं। भाजपा ने टीडीपी की मांगों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित रणनीति अपनाई है, जिससे एनडीए का बहुमत सुनिश्चित हो सके। यह रणनीति न केवल भाजपा को स्पीकर पद पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि टीडीपी के समर्थन को भी सुनिश्चित करती है।
भाजपा का समाधान
BJP ने स्पीकर पद पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए रणनीतिक कदम उठाए हैं। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति संसद के नए सत्र की शुरुआत में स्पीकर का चुनाव करने में मदद करता है। प्रोटेम स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वह संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है और नए स्पीकर का चुनाव सुनिश्चित करता है।

इसके अलावा, भाजपा ने स्पीकर पद के लिए बहुमत के आधार पर चुनाव कराने की रणनीति अपनाई है। इस रणनीति के तहत, उन्होंने अपने उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए सहयोगी दलों के साथ बातचीत की है और उन्हें अपनी रणनीति के पक्ष में किया है।
आंध्र प्रदेश से भाजपा सांसद डी. पुरंदेश्वरी का नाम लोकसभा स्पीकर की दौड़ में सबसे आगे चल रहा है। 64 वर्षीया पुरंदेश्वरी, एनटी रामाराव की बेटी और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू की साली हैं। 1996 में एनटी रामाराव के तख्तापलट के समय पुरंदेश्वरी ने चंद्रबाबू नायडू का समर्थन किया था। इस वजह से नायडू को भी पुरंदेश्वरी के नाम का समर्थन करना होगा।
वर्तमान राजनीतिक स्थिति में, स्पीकर पद को लेकर भाजपा और टीडीपी के बीच संघर्ष जारी है। भाजपा ने अपनी रणनीति से इस पद पर नियंत्रण बनाए रखा है, जो आगामी समय में भारतीय राजनीति को नई दिशा दे सकता है। स्पीकर पद का महत्व न केवल संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में है, बल्कि एंटी-डिफेक्शन कानून का पालन सुनिश्चित करने में भी है।
इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय राजनीति में स्पीकर पद का कितना महत्व है और इसे लेकर राजनीतिक दलों के बीच कैसे संघर्ष होता है। भाजपा ने अपनी रणनीति से इस पद पर नियंत्रण बनाए रखा है, जिससे वह संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चला सके और एंटी-डिफेक्शन कानून का पालन करवा सके।