अपने बनाये हथियार से हारी BJP: सोशल मीडिया का प्रभाव…

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सोशल मीडिया (Social Media) का बेहतरीन उपयोग कर शानदार जीत हासिल की थी। लेकिन, 2024 में उन्हीं के बनाए हथियार ने उन्हीं को हरा दिया। एनडीए बहुमत पाकर भी बीजेपी को बहुमत के पार ना देखकर किस प्रकार से जनता एनडीए में सरकार बनते तो देख रही है लेकिन बीजेपी की इसे हार के रूप में देख रही है आप सभी को मालूम होगा कि नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए ने सरकार बनाने के लिए जो जरूरी नंबर हैं वह जुटा लिए हैं लेकिन उन 272 नंबरों की पालना में बीजेपी का अपना 272 में से कम यानी 240 है अर्थात 272 का जो करिश्माई आंकड़ा है वह बीजेपी ने पार नहीं किया है जिसके चलते बीजेपी को बहुत सारे कंप्रोमाइज सरकार बनाते समय करने पड़ सकते हैं। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे सोशल मीडिया (Social Media), जो कभी BJP की ताकत थी, अब उनकी कमजोरी बन गई।

2014 के चुनावों में, नरेंद्र मोदी ने “चायवाला” छवि का उपयोग करके जनता के दिलों में जगह बनाई। सोशल मीडिया पर चलाए गए “सेल्फी विथ मोदी” जैसे अभियानों ने युवाओं को आकर्षित किया और BJP को बड़ी जीत दिलाई। 2019 में भी इसी रणनीति का दोबारा उपयोग किया गया। सुर्खियों में है कि टीडीपी ने यह पद मांग लिया जेडीयू ने यह पद मांग लिया सहयोगी गठबंधन के द्वारा कैबिनेट के अंदर प्रमुख पदों को मांगा जा रहा है अब ऐसी स्थिति में बड़ा रोचक हो जाता है यह जानना कि जिस बीजेपी ने वर्ष 2014  से 2019 में अपने बहुमत के आधार पर सारे फैसले लिए हो एक पार्टी स्पष्ट बहुमत लेकर अपने तरीके का कैबिनेट चला रही हो अब वो गठबंधन की राजनीति में होगी। गठबंधन की राजनीति में गठबंधन के सहयोगी संगठनों को उनकी मनो मुताबिक राजनीतिक पार्टियों को कैबिनेट के अंदर जगह दी जाएंगी।

सोशल मीडिया ( Social Media ) का प्रभाव एक दोधारी तलवार की तरह होता है। 2024 के चुनावों में, BJP का यही हथियार उनके खिलाफ हो गया। जैसे भगवान शिव का भस्मासुर को दिया गया आशीर्वाद अंततः उन्हीं को भारी पड़ा, वैसे ही सोशल मीडिया की ताकत भी BJP पर भारी पड़ गई।2004 और 2009 में यूपीए सरकार सत्ता में आई, लेकिन उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार और घोटालों के कई आरोप लगे। इस दौरान सोनिया गांधी, राहुल गांधी की मां, मनमोहन सिंह की सरकार में एक प्रभावशाली महिला थीं। राहुल गांधी को हमेशा से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा गया, जो एक राजनैतिक विरासत वाले परिवार में पैदा हुए हैं – उनकी मां, पिता, दादी और परदादा सभी प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi ) ने अपनी छवि एक ‘चायवाले’ के रूप में बनाई, जो उनके साधारण और संघर्षपूर्ण जीवन को दर्शाती थी, जबकि वह उस समय गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके थे। मोदी ने खुद को आम लोगों से जोड़ते हुए पेश किया, जबकि राहुल गांधी को एक विशेषाधिकार प्राप्त राजकुमार के रूप में दिखाया गया।

मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में देश की अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार, और सबसे महत्वपूर्ण, युवाओं के रोजगार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। उनके नारे “बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार” ने जनता के बीच गहरी छाप छोड़ी।

2014 के चुनाव प्रचार में मोदी ने सोशल मीडिया और तकनीक का बखूबी उपयोग किया। उनका “सेल्फी विद मोदी” अभियान युवाओं में बेहद लोकप्रिय हुआ, जिसने उन्हें सीधे युवा मतदाताओं से जोड़ दिया।

जो रणनीतियाँ 2014 में भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुईं, उन्हें बाद में विपक्ष ने अपनाया। महंगाई और रोजगार के मुद्दे, जिन्हें मोदी ने 2014 में उठाया था, उन्हें कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल किया, यह दर्शाते हुए कि राजनीतिक रणनीतियाँ समय के साथ घूमकर फिर सामने आ जाती हैं।

BJP द्वारा सीखे गए सोशल मीडिया ( Social Media ) के गुरों को विपक्ष ने अच्छी तरह से समझा और लागू किया। INDIA गठबंधन ने सोशल मीडिया का कुशलता से उपयोग करके BJP को 222 के आंकड़े तक पहुंचने नहीं दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि BJP को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और गठबंधन की राजनीति में उन्हें समझौते करने पड़े।

2014 से 2024 के बीच भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव आए। जनता, विशेषकर युवाओं की सोच और उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। BJP की रणनीतियों का उपयोग कर, विपक्ष ने युवाओं के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और जनता का समर्थन हासिल किया।

सोशल मीडिया ( Social Media ) अब राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। 2014 में जहां मात्र 13% लोग इंटरनेट का उपयोग करते थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा 52% हो गया है। इसका सीधा असर चुनावी अभियानों और जनता की सोच पर पड़ा है।

निष्कर्ष

राजनीतिक रणनीतियाँ चक्रीय होती हैं। जो हथियार आज किसी के पक्ष में काम करता है, वही कल उसके खिलाफ हो सकता है। सोशल मीडिया की भूमिका भारतीय राजनीति में और भी महत्वपूर्ण हो गई है और यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में यह किस तरह से प्रभावित करेगी।

इस प्रकार, हमने देखा कि कैसे BJP ने अपने बनाये हथियार से ही हार का सामना किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि राजनीति में कोई भी रणनीति स्थायी नहीं होती, और समय के साथ बदलती रहती है।

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