Tirupati Temple : तिरुपति मंदिर, जिसे भारत का सबसे धनी मंदिर कहा जाता है, न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि धार्मिक यात्रियों का प्रमुख स्थान भी है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू का विशेष महत्त्व है। यह लड्डू ‘जीआई टैग’ प्राप्त करने वाला एकमात्र प्रसाद है, जिसे देश-विदेश में बहुत श्रद्धा से ग्रहण किया जाता है।

लड्डू घोटाला विवाद
हाल ही में तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में मिलावट की खबरों ने देशभर में हलचल मचा दी। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन लड्डुओं में उपयोग किए गए घी में पशु चर्बी और मछली के तेल की मिलावट होने की बात कही गई। यह खबर सामने आने के बाद मंदिर की पवित्रता और प्रसाद की शुद्धता पर सवाल खड़े हो गए। श्रद्धालु, जिन्होंने इसे बड़ी आस्था के साथ ग्रहण किया था, ठगा महसूस कर रहे हैं। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, और जांच की मांग की जा रही है (Fat in Tirupati Temple …)।
राजनीतिक विवाद
तिरुपति मंदिर का यह मामला केवल धार्मिक विवाद तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक रंग भी ले चुका है। वर्तमान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के बीच इस मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। मंदिर के प्रबंधन में राजनीतिक हस्तक्षेप और घी की खरीदारी को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं।
लड्डू निर्माण की प्रक्रिया और इतिहास
तिरुपति लड्डू की परंपरा 300 साल पुरानी है। इसे विशेष ब्राह्मणों द्वारा तैयार किया जाता है, और इसका वजन लगभग 175 ग्राम होता है। वर्ष 2009 में इसे ‘जीआई टैग‘ प्राप्त हुआ, जिससे इसकी विशिष्टता और बढ़ गई।
प्रसाद की पवित्रता और श्रद्धालुओं की आस्था
लड्डू में मिलावट की खबरों से श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची है। तिरुपति के लड्डू को पवित्र प्रसाद माना जाता है, और इसमें मांसाहारी तत्वों की मिलावट ने शाकाहारी लोगों की आस्था को गहरा आघात पहुंचाया है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह अत्यंत संवेदनशील मामला बन गया है।
विवाद का कानूनी पक्ष
मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, और अनुच्छेद 25 व 26 के तहत श्रद्धालुओं के अधिकारों का हनन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में अब यह मामला लंबित है, और न्यायालय के फैसले का इंतजार किया जा रहा है।
तिरुपति लड्डू घोटाले ने देशभर के श्रद्धालुओं की भावनाओं को गहरे रूप से प्रभावित किया है। यह आवश्यक है कि धार्मिक आस्थाओं का सम्मान किया जाए और इस मामले की निष्पक्ष जांच हो। सरकार और न्यायपालिका से उम्मीद की जा रही है कि वे इस विवाद का उचित समाधान निकालें, ताकि श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था बनी रहे।