Kenya: हाल ही में केन्या में अदानी समूह के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बने हुए हैं। अदानी का नाम भारत में पहले से ही विवादित रहा है, लेकिन अब उनके केन्या के निवेश पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस ब्लॉग में हम इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझेंगे।

क्या है पूरा मामला?
अदानी समूह ने केन्या में नैरोबी के जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के विकास के लिए बोली लगाई थी। यह परियोजना पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर आधारित थी, जिसमें 750 मिलियन डॉलर की शुरुआती निवेश योजना बनाई गई थी। अदानी समूह का दावा था कि वे एयरपोर्ट के बुनियादी ढांचे को मजबूत करेंगे और केन्या को पर्यटन के क्षेत्र में और अधिक उन्नत बनाने में मदद करेंगे। हालांकि, केन्या के एविएशन वर्कर्स यूनियन और कई स्थानीय राजनीतिक दलों ने इसका कड़ा विरोध किया।
विरोध के प्रमुख कारण
- भ्रष्टाचार का आरोप: अदानी पर भारत में लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए केन्या के लोग चिंतित थे कि वे अपने देश में भी भ्रष्टाचार फैलाएंगे।
- नौकरी की सुरक्षा का मुद्दा: केन्या के एयरपोर्ट कर्मचारियों को डर था कि अदानी के आने से उनकी नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी। उनका मानना था कि अदानी भारत से कर्मचारियों को लाकर स्थानीय लोगों को नौकरी से निकाल देंगे।
- मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया: सोशल मीडिया पर अदानी के खिलाफ नाराजगी और तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। केन्या के लोगों को डर था कि अदानी हवाई अड्डे की फीस डॉलर में वसूलेंगे और इस तरह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित करेंगे।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय राजनीतिक दलों ने भी इस विरोध को बढ़ावा दिया, जिससे जनता का विरोध और तेज हो गया।
अदानी की प्रतिक्रिया
अदानी समूह ने इस विरोध पर कड़ा जवाब दिया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि अगर यह विरोध जारी रहा, तो वे उन लोगों के नाम उजागर करेंगे जिन्होंने उनसे रिश्वत ली है। अदानी ने कहा कि वे केवल केन्या में निवेश करना चाहते हैं ताकि देश का आर्थिक विकास हो सके और पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिल सके।
भारत की छवि पर प्रभाव :
भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि इस तरह के विवादों से प्रभावित हो रही है। अदानी के नाम पर भारत के नागरिकों को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
अफ्रीकी देशों में निवेश की चुनौती:
- अफ्रीकी देशों में निवेश के लिए भारत और चीन दोनों ही प्रयासरत हैं, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक हस्तक्षेप से ये निवेश प्रभावित हो सकते हैं।