18वीं लोकसभा का शपथ ग्रहण समारोह: संसद में पहले ही दिन संविधान संकट में ?

18वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और नवनिर्वाचित सांसदों ने शपथ ग्रहण (OATH)  कर ली है। लेकिन इस बार के शपथ ग्रहण समारोह ने कई संवैधानिक और राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं। संवैधानिक परंपराओं का पालन न करने के आरोप और संसद में चर्चा की कमी ने इस बार के शपथ ग्रहण को खास बना दिया है।

OATH

शपथ ग्रहण (OATH) समारोह से पहले, प्रोटेम स्पीकर के चयन को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। संवैधानिक परंपराओं के अनुसार, कांग्रेस के के. सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना था, लेकिन राष्ट्रपति ने बीजेपी के बी. मेहताब को यह जिम्मेदारी सौंप दी।  के. सुरेश के बारे में कहा जा रहा था कि वह सीनियर मोस्ट सांसद हैं इसलिए उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया जाएगा। प्रोटेम स्पीकर परंपरा अनुसार जो सबसे सीनियर सांसद को ही वनाया जाता है। इस कदम ने संसद में सत्ता और विपक्ष के बीच के तनाव को और बढ़ा दिया है। प्रोटेम स्पीकर का मुख्य कार्य नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाना होता है, लेकिन इस बार इस पद के चयन में हुई राजनीति ने इस प्रक्रिया को विवादित बना दिया। क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ है बिल्कुल हुआ है लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सदस्य ना होते हुए भी 1956 में ऐसा एक बार हो चुका है दूसरा 1977 में भी डीएन तिवारी को अस्थाई स्पीकर इसी सीनियरिटी को बाईपास करके बनाया गया था यानी हमारे देश में इन्हीं परंपराओं में दो बार ऐसा ऑलरेडी हो चुका है।

प्रधानमंत्री MODI ने अपने भाषण में विपक्ष से उम्मीद जताई कि वे संसद के कार्यों में रुकावट नहीं डालेंगे और जनहित के मुद्दों को उठाने में सहयोग करेंगे। लेकिन विपक्ष के नेता खड़गे ने एनडीए सरकार की नाकामियों को उजागर करते हुए प्रधानमंत्री के इस बयान की आलोचना की। उन्होंने नीट भर्ती परीक्षा, मणिपुर, असम, और महंगाई जैसे मुद्दों को उठाया। खड़गे का कहना था कि सरकार जनता की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है और संसद में इन मुद्दों पर चर्चा की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री का भाषण हुआ और उस भाषण में उन्होंने जो बातें रखी उसमें आज की तारीख का उल्लेख था साथियों आज 25 जून है इमरजेंसी यानी आपातकाल के आज 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं इस 50 वर्ष के पूरे होने पर याद दिलाने का प्रयास किया कि आज से 50 साल पहले इमरजेंसी लगाकर इसी कांग्रेस ने संविधान का उल्लंघन किया था। विपक्ष को जेल में डाला गया अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला गया अखबारों पर बैन लगाया गया था। आज वही कांग्रेस संविधान की हिफाजत की बात कर रहा है

संसद में सांसदों द्वारा प्रश्न पूछने और चर्चा का महत्व हमेशा से रहा है। 1990 से पहले प्रति लोकसभा में 88 डिस्कशंस होते थे, लेकिन 1990 के बाद इनकी संख्या घटकर 11 रह गई। 17वीं लोकसभा में केवल एक बार ही आधा घंटे का डिस्कशन हुआ है। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि सांसदों को अपने क्षेत्रों के मुद्दों को संसद में उठाने का पर्याप्त मौका नहीं मिल रहा है। चर्चा का समय घटने से न केवल सांसदों की प्रभावशीलता कम हो रही है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व का महत्व भी कमजोर हो रहा है। विपक्ष की फ्रंट लाइन में राहुल गांधी जी थे साथ में अखिलेश यादव थे और तीसरे जो व्यक्ति थे ना वो बहुत इंपॉर्टेंट थे तीसरे व्यक्ति जो बगल में बैठे हुए हैं फैजाबाद अयोध्या के सांसद अवधेश प्रताप प्रसाद यह बहुत इंपॉर्टेंट चीज हुई साथ ही साथ ममता बनर्जी के सांसद सुदीप बद्ध उपाध्याय भी यहां पर बैठे हुए दिखाई दिए

आज के सत्र में लोकसभा स्पीकर के चयन का भी मुद्दा उठ सकता है। यह दे​​त्ता पक्ष के बीच किसी सहमति पर पहुंचा जा सकता है या फिर यह सत्र भी केवल वाद-विवाद और आरोप-प्रत्यारोप में ही समाप्त होगा। स्पीकर का चयन संसद के सुचारू संचालन के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि स्पीकर ही यह तय करते हैं कि कौन से मुद्दे उठाए जाएंगे और उन पर कितनी चर्चा होगी। इस बार के सत्र में स्पीकर के चयन को लेकर भी राजनीतिक उठापटक देखने को मिल सकती है।

      18वीं लोकसभा के शपथ ग्रहण समारोह ने कई संवैधानिक और राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रोटेम स्पीकर के चयन से लेकर विपक्ष की भूमिका तक, कई मुद्दे संसद के सुचारू संचालन के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में संसद किस दिशा में आगे बढ़ती है और क्या यह सत्र जनहित के मुद्दों को सुलझाने में सफल हो पाता है। संसद का मुख्य कार्य जनता के मुद्दों ​​न निकालना होता है। अगर संसद में चर्चा का समय घटता है, तो इससे न केवल जनप्रतिनिधियों की भूमिका कमजोर होती है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ें भी कमजोर होती हैं।

  • संसद में चर्चा का समय बढ़ाना: संसद में अधिक से अधिक समय चर्चा के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि सांसद अपने क्षेत्रों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा सकें। इससे जनप्रतिनिधियों की भूमिका मजबूत होगी और लोकतंत्र की जड़ें भी मजबूत होंगी।
  • संविधानिक परंपराओं का पालन: प्रोटेम स्पीकर जैसे संवेदनशील पदों के चयन में संविधानिक परंपराओं का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। इससे संसद की गरिमा बनी रहेगी और संवैधानिक संस्थाओं पर जनता का विश्वास भी मजबूत होगा।
  • सत्ता और विपक्ष का सहयोग: संसद के सुचारू संचालन के लिए सत्ता और विपक्ष दोनों को मिलकर काम करना चाहिए। जनहित के मुद्दों पर दोनों पक्षों को एक साथ आकर समाधान निकालना चाहिए। इससे जनता का विश्वास लोकतंत्र पर बना रहेगा और संसद का महत्व भी बढ़ेगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top